
विवाह संस्कार
विवाह संस्कार हिंदू धर्म के अनुसार एक महत्वपूर्ण संस्कार है, जिसे जीवन के सबसे पवित्र और शुभ कर्मों में से एक माना जाता है। यह संस्कार व्यक्ति के जीवन में गृहस्थ आश्रम की शुरुआत को इंगीत करता है। विवाह संस्कार के दौरान दो व्यक्तियों का विवाह पवित्र रीति-रिवाजों के साथ संपन्न होता है, जिससे उन्हें एक-दूसरे के साथ जीवनभर की साझेदारी की जिम्मेदारी मिलती है।
विवाह संस्कार (सप्तपदी) हिंदू धर्म के प्रमुख और महत्वपूर्ण संस्कारों में से एक है। यह व्यक्ति के जीवन के प्रमुख मोड़ को दर्शाता है और इसे एक पवित्र, आध्यात्मिक और सामाजिक कर्तव्य के रूप में देखा जाता है। विवाह संस्कार के माध्यम से दो व्यक्तियों का मिलन होता है, जो न केवल शारीरिक और मानसिक दृष्टि से एक-दूसरे से जुड़ते हैं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी एक दूसरे के साथ एकजुट होते हैं। यह संस्कार जीवन के एक महत्वपूर्ण आश्रम, गृहस्थ आश्रम, की शुरुआत है।
विवाह संस्कार का उद्देश्य:
धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति: विवाह को धर्म, परंपरा और आध्यात्मिक उन्नति के रूप में देखा जाता है। यह संस्कार व्यक्ति को अपने जीवन के कर्तव्यों के प्रति जागरूक करता है।
गृहस्थ जीवन की शुरुआत: विवाह के बाद, व्यक्ति गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता है, जहाँ उसे परिवार का पालन-पोषण, समाज के प्रति जिम्मेदारियाँ और जीवन में संतुलन बनाए रखने की जिम्मेदारी मिलती है।
समाज और परिवार का निर्माण: विवाह संस्कार दो परिवारों के बीच संबंधों को मजबूत करता है और समाज में एकता और सामाजिक व्यवस्था को बढ़ावा देता है।
धार्मिक कर्तव्यों का पालन: विवाह के बाद, पति-पत्नी को एक साथ मिलकर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार पुरुषार्थों का पालन करने की जिम्मेदारी होती है।
विवाह संस्कार की प्रक्रिया:
विवाह संस्कार की प्रक्रिया में विभिन्न धार्मिक क्रियाएँ, संस्कार, और परंपराएँ शामिल होती हैं, जिनका पालन आमतौर पर परिवार के वरिष्ठ सदस्य, पंडित या पुरोहित द्वारा किया जाता है। विवाह के दौरान की जाने वाली कुछ महत्वपूर्ण क्रियाएँ इस प्रकार हैं:
1. तिलक और प्रस्ताव (बधाई और सगाई):
विवाह से पहले, लड़के और लड़की के परिवारों के बीच तिलक (आशीर्वाद और बधाई) और सगाई की रस्म होती है। इसमें लड़के और लड़की को अच्छे वाचन और आशीर्वाद देने की परंपरा होती है।
2. प्रस्ताव और वरमाला:
विवाह की रस्में आमतौर पर वधू और वर के परिवारों के मिलन के साथ शुरू होती हैं। इसके बाद वर और वधू एक-दूसरे को वरमाला (फूलों की माला) पहनाते हैं, जो उनकी आपसी स्वीकृति और प्रेम को दर्शाता है।
3. अग्नि के सामने सात फेरे (सप्तपदी):
यह विवाह संस्कार का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र हिस्सा होता है। वर और वधू अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेते हैं, और हर फेरे के साथ एक विशेष संकल्प करते हैं:
पहला फेरा – एक दूसरे से मित्रता, सम्मान और प्रेम का संकल्प।
दूसरा फेरा – समृद्धि और जीवन के लिए एकजुट होने का संकल्प।
तीसरा फेरा – संतान उत्पत्ति और उनके कल्याण का संकल्प।
चौथा फेरा – घर के कर्तव्यों को निभाने का संकल्प।
पाँचवां फेरा – जीवनभर एक-दूसरे का साथ देने का संकल्प।
छठा फेरा – एक-दूसरे की सेहत और सुख-शांति की कामना।
सातवाँ फेरा – परमात्मा के साथ मिलकर जीवन का हर संघर्ष सहन करने का संकल्प।
4. हस्त मिलन और आशीर्वाद:
विवाह के बाद, पति-पत्नी एक दूसरे के हाथों को पकड़कर जीवनभर साथ रहने का संकल्प करते हैं। इसके बाद, पंडित और परिवार के अन्य सदस्य नवदम्पत्ति को आशीर्वाद देते हैं।
5. कुमकुम और सिंदूर:
विवाह के बाद, दुल्हन के माथे पर सिंदूर लगाया जाता है और उसकी मांग को भरा जाता है, जो विवाहित जीवन का प्रतीक होता है। कुमकुम भी एक पारंपरिक रस्म है जो विवाह के बाद की जाती है।
6. फूलों और चावल की पूजा:
विवाह के अंतिम चरण में, वर और वधू पूजा करते हैं, जिसमें वे फूलों, चावल, और अन्य सामग्रियों को देवी-देवताओं को अर्पित करते हैं। इसके बाद, उनके द्वारा किए गए संकल्प और आशीर्वादों की पुष्टि की जाती है।
विवाह संस्कार के महत्व:
धार्मिक और आध्यात्मिक संबंध: विवाह एक धार्मिक कार्य है जो जीवन को संतुलित और मार्गदर्शित करता है। यह कर्म व्यक्ति को अपने जीवन में धर्म और कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रेरित करता है।
समाज में स्थिरता: विवाह से समाज में परिवारों का निर्माण होता है, और यह समाज में स्थिरता और सहयोग की भावना को बढ़ावा देता है।
पारिवारिक सुख और समृद्धि: विवाह व्यक्ति को अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करता है, जिससे जीवन में खुशहाली और समृद्धि आती है।
आध्यात्मिक उन्नति: विवाह व्यक्ति को जीवन के चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष) की प्राप्ति में मदद करता है। यह उसे आत्मिक संतुलन और उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करता है।
विवाह संस्कार के बाद की जिम्मेदारियाँ:
गृहस्थ जीवन: विवाह के बाद पति-पत्नी को परिवार का पालन-पोषण और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना होता है।
संतानोत्पत्ति: विवाह के उद्देश्य में संतानोत्पत्ति भी एक महत्वपूर्ण कर्तव्य है, जो परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक है।
एक-दूसरे का सम्मान और सहयोग: विवाह में दोनों को एक-दूसरे का सम्मान और सहयोग देना होता है, ताकि जीवन सुखमय और सामंजस्यपूर्ण हो।
धार्मिक कर्तव्यों का पालन: पति-पत्नी को अपने धार्मिक कर्तव्यों का पालन करते हुए परिवार की धार्मिक स्थिति को बनाए रखना होता है।
निष्कर्ष:
विवाह संस्कार केवल एक पारंपरिक और सांस्कृतिक घटना नहीं है, बल्कि यह एक धार्मिक और आध्यात्मिक कर्म है, जो जीवन को एक उद्देश्यपूर्ण दिशा देता है। यह संस्कार न केवल दंपत्ति को अपने जीवन के कर्तव्यों का एहसास कराता है, बल्कि समाज में स्थिरता और खुशहाली लाने में भी मदद करता है।


विवाह संस्कार: हिंदू धर्म में विवाह का महत्व और उसकी प्रक्रिया
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